चाम्पा

पंचम गुरु श्री गुरु अर्जुन देव जी के शहीदी दिवस पर,गुरुद्वारा गुरु सिंघ सभा चाम्पा के द्वारा बरपाली चौक में शरबत का लंगर,,अर्थात छबील,,,,

चाम्पा-

चाम्पा नगर के गुरुद्वारा गुरु सिंघ सभा चाम्पा के द्वारा प्रतिवर्ष सिखों द्वारा पंचम गुरु श्री गुरु अर्जन देव जी के शहीदी दिवस पर शरबत का लंगर जिसे छबील कहते हैं वितरण किया जाता है

इसकी वास्तविक घटना शहीदी के पश्चात मौसम का गर्मी एवं लोगों के मन को शांत रखने के लिए ठंडा शरबत का लंगर बांटा जाता है अर्थात छबील लगाई जाती है

वैसे तो सरदारों को भारतवर्ष में कही भी कम नही आका जा सकता है चाहे वो कॅरोना काल हो चाहे भारतवर्ष में कही भी आपदा विपत्ति हो सबसे पहले सहयोग करने और मदद पहुचाने वाले में इनका नाम सबसे आगे रहता है

आज इसी सहयोग में चाम्पा गुरुद्वारा गुरु सिंघ सभा के सदस्यों ने चाम्पा स्थित बरपाली चौक में इस भीषण गर्मी में आने जाने वाले राहगीरों के साथ चाम्पा वासियों का ठंडा सरबत पिलाकर लोगो का गला तरबतर किया

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अब आपको गुरू श्री अर्जुन देव जी की शहीदी की बात बताते है

माता गंगा से इनका विवाह 1589 में हुआ था. इनके एक पुत्र हुआ जिनका नाम गुरु हरगोबिन्द था जो अगले सिख गुरु भी बने. मदासपुर शहर तथा अमृतसर सरोवर बनाकर कई जनहित के कार्य किया. शेख महोमद मीर शाह लाहौर के रहने वाले सूफी फकीर थे. अर्जुन देव जी ने इनके हाथों से स्वर्ण मन्दिर की नीव रखी

अर्जुन देव जी ने 30 रागों में 2,218 शबदों को कहा तथा सिक्खों के पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब को पुनः लिखवाकर अपनी साखी को भी उनमें जोड़ा. जब गुरूजी गुरु ग्रंथ साहिब का सम्पदान करवा रहे थे तो कुछ लोगों ने यह अपवाह फैलाई कि इसमें इस्लाम विरोधी कई बातें जोड़ी गई हैं.यह शिकायत सम्राट अकबर के पास पहुची तो उन्होंने स्वयं अध्ययन करने के बाद पाया कि संसार को मानवता की राह दिखाने वाले पवित्र ग्रंथ में इस तरह की कोई बात नहीं हैं. उन्होंने गुरूजी को मिली तकलीफ की क्षमा मांगते हुए 50 मोहरे भेट की.
मुगलों के अधार्मिक कार्यों की प्रवृति के रूप में प्रतिकार के लिए हिन्दू धर्म की शस्त्र सेना के रूप में सिख धर्म का उदय हुआ था. पांचवे गुरु अर्जुन देव जी के समय मुगल सम्राट अकबर था जो अपने पूर्ववर्ती शासकों की तुलना में कम कट्टरपंथी था.

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मगर अकबर के देहांत के बाद उसका बेटा जहाँगीर शासक बनता है, पूरे हिंदुस्तान पर शासन करने की उसकी महत्वकांक्षा में एक रोड़ा बाबा अर्जुन देव थे. सिखों और हिन्दुओं में इनकी गहरी लोकप्रियता थी. धार्मिक और राजनैतिक कारणों से जहाँगीर अर्जुन देव जी के जीवन को समाप्त करना चाहता था.

गुरु अर्जुन देव जी की शहीदी के दो कारण उनके घर के भेदी थे. पहला था चंद, जो अपनी बेटी का विवाह गुरूजी से करना चाहता था मगर गुरूजी द्वारा स्पष्ट मना कर दिए जाने पर वह उनकी हत्या करने की ठान चुका था.

मुगलों के अधार्मिक कार्यों की प्रवृति के रूप में प्रतिकार के लिए हिन्दू धर्म की शस्त्र सेना के रूप में सिख धर्म का उदय हुआ था. पांचवे गुरु अर्जुन देव जी के समय मुगल सम्राट अकबर था जो अपने पूर्ववर्ती शासकों की तुलना में कम कट्टरपंथी था.

अर्जुन देव जी की हत्या को चाहने वाला दूसरा व्यक्ति उनका बड़ा भाई पृथ्वी चंद था. उसका मानना था कि अर्जुन देव जी के कारण वह गुरु गद्दी हासिल नहीं कर सका था.
चंदू और पृथ्वीचंद जहाँगीर के मोहरे बनकर अर्जुन देव जी के प्रति जहाँगीर में नफरत भरते रहे. जहाँगीर कट्टर मुस्लिम था उसे पहले से गुरूजी द्वारा किये जा रहे धार्मिक और सामाजिक कार्य पसंद नहीं थे. दोनों की दुश्मनी का एक कारण खुसरो भी था. शहजादा खुसरो जहाँगीर का बागी बेटा था जिसे अर्जुन देव जी ने शरण दी थी.

इस पर जहाँगीर ने अर्जुन देव जी पर 2 लाख रूपये का जुर्माना लगा दिया अथवा शाही दंड भुगतने का फरमान दे दिया. अर्जुन देव जी को यह प्रस्ताव भी दिया गया, अगर वे सिख ग्रथों में मुहम्मद साहब की स्तुति लिखे तो उनका यह दंड माफ़ कर दिया जाएगा, मगर पांचवे गुरु ने मुगल की एक बात न मानी.

अकबर अर्जुन सिंह की बड़ी इज्जत करता था. मगर उसका बेटा जब जहांगीर दिल्ली का शासक बना तो व अकबर की नीतियों के बिलकुल अलग था. घोर कट्टरता की विचारधारा के चलते उनका पहला निशाना अर्जुन सिंह ही बने, अपने बेटे खुसरों की मदद से उसने गुरूजी को लाहौर की जेल में बंद कराया.

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जब गुरूजी कैद में थे तो उन्हें अपना धर्म परिवर्तित कर इस्लाम अपनाने के लिए जोर लगाया, मगर वे नहीं माने तो उन्हे कठिन यातनाएं दी जाने लगी. गर्म रेत पर लिटाकर उन्हें पीटा जाता तो कभी उबलते जल में पूरे दिन रखा जाता तो कभी तवे पर गर्म रेत पर बिठा कर उनके सर पर गर्म रेत डाली जाती पांच दिनों की घोर यातनाओं के बाद 30 मई 1606 उन्हें रावी नदी के किनारे गुरूजी ने अपनी देह त्याग दी.

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