समाजिक

रक्षाबंधन पर एक बहन श्रीमति शांति थवाईत की मार्मिक कहानी…

रक्षाबंधन ! आज़ भी याद हैं भाई की वो यादें

ना मांगें वो धन और दौलत , ना ही मांगें उपहार ।

आज़ रक्षाबंधन हैं , भाई बहन के पवित्र स्नेह बंधन का दिन ! यह सिर्फ एक मौली धागा नहीं हैं , बल्कि भाई-बहन के प्यार को अनंतकाल तक बांधने वाला आजीवन बंधन हैं । एक बहन अपने प्रिय भाई को याद करके आहात जाती हैं जब रक्षाबंधन पर फिल्माया गया कोई गीत जब टेलीविजन पर प्रसारित होता हैं ऐसे ही एक गीत बहना ने भाई की कलाई पर प्यार बांधा हैं ••••यह फिल्म ‘ रेशम की डोर ‘ [ जो कि वर्ष 1974 में रिलीज ] इसी तरह रक्षाबंधन पर कालजयी गीत फिल्म काजल का ‘ मेरे भईया , मेरे चंदा मेरे अनमोल रतन ‘ चला तो मेरी आंखों में आंसुओं की धारा निकल आई और निकलना स्वाभाविक ही हैं । ऐसे ही एक मार्मिक किन्तु सच्चीं कहानी श्रीमति शांति थवाईत , { बहनजी } संप्रति : व्याख्याता राजनीति विज्ञान ने अपने अंतर्मन से लिखी हैं । अपने प्यारे भाई रामकुमार गोपाल को जिन्हें वे ‘ कुमार भैय्या ‘ को स्मरण करते हुए सूनी कलाई पर संदेश परक एक राखी मेरे पास भेजी हैं । एक भाई भी यही चाहता हैं कि हर ख़ुशी उसकी बहन को मिलें दुःखों की परछाईं से वह कोसों दूर रहें।इन शब्दों के साथ इनकी कहानी आप तक संप्रेषित करता हूं •••••

ना मांगें वो धन और दौलत,ना मांगें कोई उपहार ।
चाहत बहन की इतनी कि भाई बहन का बना रहें प्यार ।
ना कोई ग़म उसके पास आए, खुशियां मिलें हजार ,
बहन की हैं मनोकामना यहीं,भाई जहां पर रहें ईश्वर रखें प्रसन्न ।।

प्रस्तुतकर्ता : शशिभूषण सोनी, पूर्व सहायक प्राध्यापक ( वाणिज्य ) शासकीय महाविद्यालय चांपा
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बड़े भैया नाम था रामकुमार गोपाल जी जिन्हें सब प्यार-से ‘ कुमार भैय्या’ कहते थे , जो मेरे मुंहबोले भैय्या थे । पढ़ाई में इतने अव्वल रहें कि उन्होंने अपना दिमाग़ी सन्तुलन खो दिया ।लेकिन इस अवस्था में कभी भी उन्होंने अपने भाई होने का फर्ज नही भूला ?

हमारे सामने वाले घर में प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी , अपने जमाने के मशहूर चिकित्सक , नगर पालिका परिषद चांपा के सर्व प्रथम अध्यक्ष स्वर्गीय डांक्टर शांतिलाल गोपाल जी का निवास स्थान हैं जिन्हें हम सभी भाई-बहन प्यार से बबा कहते थे । उनके तीन बेटे व तीन-बेटियां थी । बड़ी बेटी का विवाह एक प्रोफ़ेसर के साथ हुआ था । बहुत संपन्र परिवार मे ब्याही गई थी ।मंझली बेटी का विवाह भी एक अच्छे परिवार में हुआ था लेकिन वो एक बच्चे के जन्म लेते ही चल बसी । छोटी-बेटी जिसे प्यार-से सब विज्जू कहकर बुलाते थे पढ़ाई-लिखाई में बहुत होशियार थी , ज़्यादा पढ़ाई के कारण उनका दिमाग भी थोड़ी-सी स्थिर नहीं रहती थी और एक-दिन उनकी भी अचानक मौत हो गई।मौत के बाद घर मे सन्नाटा-सा छा गया ।
बेटों मे सबसे बड़े बेटे जिनका नाम रामकुमार था जिन्हें घर में सब भाई-बहन प्यार से बड़े भैयाजी बोलते थे मैं भी उनको बड़े भैया ही बोलती थी। मंझले भैया घन्नु भैया जो पेशे से वकील थे और सबसे छोटे गुड्डू भैया जो कि पी डब्लू डी में बाबू थे । बहन की मौत के सदमें को वे तीनों सह नही पा रहे थे । बड़े भैया की शादी नही हुई थी । घन्नू भैया का विवाह हो गया था । भाभी बहुत ही अच्छी व समझदार मिली । घर परिवार को उन्होंने अच्छें से संभाल लिया था ।

रक्षा-बंधन का त्योंहार था । घर में सब ख़ामोश थे । बड़ी-दीदी रक्षा बंधन में इस साल नही आ रही हैं , यह सबको पता था । तीनों भाई अपनी बहनों को याद कर रहे थे और गमगीन माहौल में बैठे थे । दो-दो बहनों का इस दुनिया से जाना मामूली दुःख नही था । तभी भाभी ने मुझे आवाज दिया कि मैं रक्षाबंधन लाकर भैया लोगो को बांध दूं । चूंकि मैं हमेशा भाभी के साथ रहती थी और मैं उनकी कोई बात नही टालती थी । सो मैंने उसी दिन तीनों भाइयों को राखी बांधा हालांकि मैं उस समय बहुत छोटी थी मुझें कुछ-कुछ ही याद हैं लेकिन उसके बाद मैंने और तीनो भैया ने आखिरी सांस तक राखी का फर्ज निभाया ।
मैं रक्षा बंधन पर पहले तीनों भैया को राखी बांधती थी फिर अपने घर में भाइयो को बांधती थी । मैं सबकी बहुत लाडली थी । मैने कभी भी अपने भाइयो व तीनो भैया मे भेद नही किया।धीरे धीरे मै बडी होने लगी । भाभी ने मुझे अंग्रेजी सिखाया व बड़े भैया ने साइंस पढाना शुरु किया । मुझे साइंस में बिल्कुल रुचि नही था ।चित्र बनाना मुझे पसंद नही था या यूं कहें आता नही था । स्कूल में मैडम ने कह दिया था कि कल सबको कोबरा का चित्र कापी में बना कर लाना हैं । मैने बडे भैया से बनवाने की योजना बनाई ।पर यह क्या उसी दिन बडे भैया को पागलपन का दौरा पडा था ।मै परेशान हो गयी कि क्या करुं ? स्कूल मे सजा मिलने का डर था तो सभी सहेलियों से अच्छा चित्र बनवाने की होड़ थी । तभी मैंने निर्णय लिया कि कुछ भी हो मैं चित्र बडे भैया से बनावाकर ही रहूंगी । मैं अपना कापी व पेंसिल लेकर बड़े भैया के पास पहुंच गईं । सबने मुझें बहुत मना भी किया , डराया पर मैंने किसी की नही सुनी । कमरें मे पहुंचकर मैंने आवाज दिया बड़े भैया , बड़े भैय्या उठो न मुझें आपसे एक काम हैं । उन्होने आंखे खोलते हुए मेरी ओर देखा और बड़बड़ाने लगें नोनी क्या हैं ? वो मुझे प्यार से नोनी ही संबोधित थे । मैंने कहा भैयाजी यह चित्र नही बन रहा हैं बना दो ना ! नही बनेगा तो कल मैं मार खाऊंगी । मैं स्कूल भी नही जाउंगी । मेरा इतना कहना था कि वो उठ कर बैंठ गये और मेरी ओर देखते हुए बोलें कि क्यों ! स्कूल क्यों नही जाओगी ••? लाओं मैं चित्र बना दें रहा हूं तुम जरुर स्कूल जाना । पढ़ाई के प्रति उ‌नका बहुत लगाव था । कुछ ही देर में उन्होने मुझें चित्र बनाकर दे दिया फ़िर मुझे घर जाने को बोलते हुए दरवाजा बंद कर दिया । इधर सब मुझ पर गुस्सा हो रहे थे , सबके मन में डर था कि कहीं कुछ उल्टा-सीधा ना हो जाए। लेकिन मेरे मन में कोइ डर नही था मुझें बडे भैयाजी के ऊपर पूर्ण विश्वास था । कुछ ही दिनों में
भैयाजी का स्वास्थ्य ठीक हो गया और उनकी शादी हो गयी और दो बच्चें भी हो गये ।

मेरी पढ़ाई पूरी होने के बाद मेरी भी शादी हो गईं । इस दौरान जो न बदला वो राखी बांधने का सिलसिला ही••। ऐसा कोई वर्ष नही गया जब मैं उनके रहते राखी बांधने नही आई । एक-बार की घटना हैं । रक्षाबंधन का दिन आने वाला था , लेकिन उससे पहले ही बड़े भैया की तबियत फिर खराब गो गई । वे सबको गाली-गलौज कर रहे थे सब कोई सब लोग उनके नजदीक जानें से डर रहे थे । मैं रक्षा बंधन में मायके आई हुई थी । पहले के अनुसार सबसे पहले मैं उन्ही को राखी बांधने जाने की सोचने लगी । घर वालों के साथ भैया के घर वाले , भाभी , बबा सबने मना किया कि शांति मत बांध इस साल राखी । लेकिन मेरा मन नही मान रहा था । मैंने जिद करके राखी बांधने के लिए ऊपर भैया के कमरे की ओर प्रस्थान किया ‌।जैसे ही मैं भैया के कमरे में गयी ।लंबे-लंबे बाल , बढ़ी हुई दाढी , मैले-कुचैले कपड़े को देखकर मुझें रोना आ गया और थोड़ा डर सा भी लग रहा था फ़िर भी मैंने हिम्मत करते हुए आवाज़ लगाई ••• बड़े-भैया बड़े-भैय्याजी उन्होंने मुझें देखा और बड़बड़ाते हुए खड़े हो गये ! मैं थोड़ी डर-सी गई लेकिन फ़िर भी मैनें हिम्मत जुटाते हुए कहा कि बड़े भैया मैं, शांति नोनी आपको राखी बांधने आई हूं । आइए राखी बंधवा लीजिए । मेरी बात सुनते ही उन्होंने उठकर अपना हाथ आगे कर दिया और मैंने राखी बांधकर माथे पर तिलक लगाई और भाई का मुंह मीठा किया और उन्हें अन्यान्य खानें का सामान दिया । झट से उन्होने सभी सामानों को एक पेपर में रखा और पांच रुपये का एक चमचमाती सिक्का लाकर देते हुए कहा कि ये लें आज रक्षाबंधन हैं न और हां जल्दी से तुम नीचे चली जाओं पता नहीं मुझें कब बहना क्या हो जाए और मैं उल्टा-सीधा कुछ कर बैठूं । मेरी आंखों में आंसुओ की धार बहने लगी अपने आंसूओं को पोछते हुए मैं अपने विक्षिप्त बड़े भैय्या की अपनी प्यारी बहन के प्रति भावनाओं को सोचने लगी और दिल से सम्मान करने लगी और यही सम्मान मेरे दिल में तब तक रही जब-तक वे इस दुनिया में थे और आज़ भी हैं जब वो इस दुनिया में नही हैं ।

लेखिका : श्रीमती शान्ति थवाईत
व्याख्याता – राजनीति विज्ञान
शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय , कुरदा ( चांपा )

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