चाम्पा

आस्था और श्रद्धा का स्थल रथयात्रा बिना किसी भेदभाव के लोग रथयात्रा में भाग लेते हैं,,देखे

चाम्पा – 02 जुलाई 2022

जय जगन्नाथ । जगन्नाथ रथयात्रा धूमधाम से निकाली गई दशमी तिथि तक आरके ज्वेलर्स सदर बाजार चांपा में भगवान जगन्नाथ स्वामी देते रहेंगे दर्शन ।

हे महाप्रभु जगन्नाथ थाम ले मेरा हाथ, अपने रथ में ले चल मुझे साथ !

लुभाए न मुझको अब कोई पदार्थ, मेरा तो बस अब एक ही स्वार्थ,

धर्म युद्ध हो या कर्म युद्ध तू बने सारथी, मैं बनूं पार्थ !

अपने रथ में ले चल मुझे साथ•• चांपा नगर-वासियों को जगन्नाथ रथयात्रा की एक दुसरे को बधाई दी ।

जगन्नाथ शब्द का अभिप्राय हैं जगत के नाथ । जगन्नाथ पुरी में स्थित जगन्नाथ धाम उड़ीसा राज्य के तटवर्ती पुरी शहर में स्थित हैं । यह देश के चार प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक हैं । यघपि शास्त्रों और पुराणों में जगन्नाथ पुरी के अनेक नाम पाए जाते हैं , जिनमें पुरुषोत्तम क्षेत्र, श्रीहरि , निलांचल , निलाद्रि, गिरजा क्षेत्र आदि प्रमुख हैं। भारतवर्ष के चार धाम क्रमशः बद्रीनाथ , द्वारिका , रामेश्वरम् के दर्शन करने के बाद पुरूषोत्तम क्षेत्र यानी कि जगन्नाथ पुरी के दर्शन करने का हिन्दू धर्म में विधान हैं । कहा जाता हैं कि गुड़िचा मंदिर में ही सबसे पहले श्री जगन्नाथ स्वामी जी की स्थापना की गई थी । इसके पश्चात् बड़ी धूमधाम से उन तीनों विग्रहों को तीन अलग अलग रथों पर बिठाकर मंदिर में ले आये, जहां उनकी स्थापना की गई और यही से सही मायने में रथयात्रा का पावन प्रसंग प्रारंभ हुआ।यह रथयात्रा सैकड़ों वर्षों से उस पवित्र दिवस की स्मृति में आज़ भी मनाया जा रहा हैं ।

‼️जगन्नाथ रथ यात्रा शुरुआत हो चुकी हैं अब होगी एक सप्ताह तक पूजापाठ ‼️


साहित्यकार शशिभूषण सोनी ने बताया कि भगवान जगन्नाथ के याद में निकाली जाने वाली ‘जगन्नाथ रथ यात्रा’ का लोग बेसब्री से इंतजार करते हैं । जगन्नाथ मंदिर हिन्दुओं के चार धाम में से एक है । यह वैष्णव सम्प्रदाय का मंदिर हैं , जो भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण को समर्पित हैं । यह भारत के ओडिशा राज्य के तटवर्ती शहर पुरी में स्थित हैं । जगन्नाथ शब्द का अर्थ ‘जगत के स्वामी’ होता हैं । इसलिए पुरी नगरी ‘जगन्नाथपुरी ‘ कहलाती हैं । इस रथ यात्रा को देखने के लिए हर साल दस लाख से अधिक तीर्थयात्री आते हैं । कहा जाता हैं कि जो व्यक्ति इस रथ यात्रा में भाग लेता है वह जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता हैं। उनके रथ पर भगवान जगन्नाथ की एक झलक बहुत ही शुभ मानी जाती हैं । इस त्योहार को ‘घोसा यात्रा’, ‘दशवतार यात्रा’, ‘नवादिना यात्रा’ या ‘गुंडिचा यात्रा’ के नाम से भी जाना जाता है।

‼️जगन्नाथ रथ यात्रा का महत्व‼️

दस दिन तक के इस महोत्सव से व्यक्ति की सभी परेशानियां समाप्त हो जाती हैं । इस रथयात्रा का पुण्य 100 यज्ञों के बराबर होता है। इस समय उपासना के दौरान अगर कुछ उपाय किये जाएं तो श्री जगन्नाथ अपने भक्तों की समस्या को जड़ से खत्म कर देते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस रथ यात्रा भगवान जगन्‍नाथ जी के मंदिर से निकालकर प्रसिद्ध गुंडिचा माता के मन्दिर तक पहुंचाया जाता है। जहां पर भगवान जगन्‍नाथ जी सात दिनों तक विश्राम करते हैं। सात दिनों तक विश्राम करके के बाद में मंदिर में वापीस आ जाते हैं । इस रथ यात्रा में शामिल होने से व्यक्ति के जीवन से सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं।

‼️छोटे-छोटे बच्चों ने निकाली जगदीश रथयात्रा । मानस द्विवेदी ने उत्साहपूर्वक भाग लेकर निकाली रथयात्रा ‼️


श्रीमद्भागवत कथा के मर्मज्ञ शीतल प्रसाद द्विवेदी जी के सुपुत्र मानस द्विवेदी ने बच्चों के साथ जगदीश रथयात्रा निकाली ।जय जय जगन्नाथ जी, हर-हर गंगे, ‘ जगन्नाथ जी के भात को जगत पसारथ हाथ ‘जैसे उद्घोष वाक्यों से नगर गुंजायमान हो उठा । शशिभूषण सोनी ने बताया कि रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ स्वामी जी, भाई बलराम जी एवं बहन सुभद्रा को विराजमान कराया गया फिर नगर भ्रमण कराते हुए नगर यात्रा निकाली गई। घर के द्वार पर भगवान जगन्नाथ स्वामी जी को देखकर भक्तों ने श्रद्धा और भक्ति से पूजापाठ एवं अर्चना किया । भक्तों ने रथ खींचकर पुण्य लाभ अर्जित किया । छोटे-छोटे बच्चों को बारंबार धन्यवाद ‌।

‼️रथयात्रा में सबसे आगे बलरामजी का रथ होता हैं‼️

जगदीश रथयात्रा में सबसे आगे बलराम जी का रथ, उसके बाद बीच में सुभद्रा देवी का रथ और सबसे पीछे भगवान् जगन्नाथ श्री कृष्णि का रथ होता है। तीनों के रथ को खींचकर मौसी के घर यानी कि गुंडीचा मंदिर लाया जाता है जो कि जगन्नाथ मंदिर से करीब तीन किलोमीटर दूर है ।

‼️भगवान जगन्नाथ के रथ को ‘नंदीघोष’ कहते हैं‼️

बलराम जी के रथ को ‘तालध्वज’ कहते हैं, जिसका रंग लाल और हरा होता है। देवी सुभद्रा के रथ को ‘दर्पदलन’ या ‘पद्म रथ’ कहा जाता है, जो काले या नीले और लाल रंग का होता है, जबकि भगवान जगन्नाथ के रथ को ‘नंदीघोष’ या ‘गरुड़ध्वज’ कहते हैं। इसका रंग लाल और पीला होता है।

‼️कंचन की नगरी चांपा अऊ मालपुआ🥚‼️

चांपा नगर में रथयात्रा एक महोत्सव के रुप में मनाया जाता हैं। आषाढ़ शुक्ल पक्ष द्वितीया से दशमी तक निर्बाध रूप से समस्त मांगलिक कार्य होते हैं और उसके बाद इन कार्यों पर चार माह के लिए विश्राम लग जाता हैं। चतुर्मास में भगवान का पूजापाठ किया जाता हैं।
नगर में जगह जगह मालपुआ दुकानदारों को बनाते और लोगों को लाइन में लगकर खरीदते हुए देखा गया । मालपुआ अपने रिश्तेदारों और चिर परिचितों को भिजवाने की परंपरा चली आ रही हैं,वह आषढ शुक्ल पक्ष द्वितीया को देखने को मिला।

आस्था और श्रद्धा का स्थल रथयात्रा बिना किसी भेदभाव के लोग रथयात्रा में भाग लेते हैं,,देखे - Console Corptech

वैसे भी लगभग दो सौ वर्षों से चली आ रही जमींदारी परंपरा के अनुसार जगन्नाथ रथयात्रा के मौके पर भगवान जगन्नाथ स्वामीजी की पूजा चांपा जमींदार के द्वारा सर्वप्रथम की जाती हैं और भोग में नारियल, शक्कर, मूंग फल,खिंचडीं और मालपुआ का भोग लगाया जाता हैं और उसे श्रद्धांलु भक्तों में निःशुल्क बांटा जाता हैं । शशिभूषण सोनी ने बताया कि प्यासा होने पर जैसे पानी की एक-एक बूंद अमृत का सुख दे रही होती हैं , ठीक वैसे ही महाप्रसाद रुपी अमृत समान प्रसाद के स्वाद के एक-एक दानें से श्रद्धालु भक्तों को तृप्ति मिलती हैं , जिसे पाने श्रद्धालु भक्तों का सैलाब उमड़ता हैं । कई लोग 56 प्रकार के भोग भी लगाते हुए देखे गए ‌। कुल मिलाकर आतिथ्य सत्कार चांपा नगर की परंपरा रही हैं,जिसका लोग आज़ भी निर्वहन कर रहे हैं ।

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