चाम्पा

व्यवहारिक और भावनात्मक रूप से नगर के प्रथम नागरिक थे कैलाश चंद्र अग्रवाल,,,

चौराहा, रास्ता बताने वाला होता है और चौराहा हर रास्ते को अपने मे समेटने वाला होता है। ठीक उसी तरह नगर के आजाद शत्रु कैलाश चंद्र अग्रवाल जी का व्यक्तित्व रहा है। राजनीति का रास्ता हो ,समाज सेवा का रास्ता हो, साहित्य सेवा का रास्ता हो , धर्म कर्म का रास्ता हो , उद्योग व्यापार का रास्ता हो , सामाजिक सरोकार का रास्ता हो,हर रास्ता कैलाश चंद्र अग्रवाल जी के विराट व्यक्तित्व पर आकर मिलता था। दूसरे शब्दों में कहें तो नगर के हर संगठन संस्था के लोग और आम जरूरत मंद लोग अपना रास्ता तय करने के लिए दिशा प्रदर्शक रूपी चौराहे पर अर्थात कैलाश चंद्र अग्रवाल जी के पास पहले पहुंचते थे ।

“कर्म किए जा फल की इच्छा मत कर” इस वाक्य को अपना ध्येय बनाकर कैलाश जी जीवन पर्यन्त अपना कर्म करते रहे । मृत्यु के एक दिन पहले उनके संयोजकत्व मे अक्षर साहित्य परिषद और महादेवी महिला साहित्य समिति द्वारा अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया उन्होंने महादेवी महिला साहित्य समिति की अध्यक्षा श्रीमती सुशीला सोनी को श्रीफल और शाल भेंट कर सम्मानित किया था। जीवन भर अपने मधुर व्यवहार से सबको आदर सत्कार देने वाले कैलाश चंद्र अग्रवाल जी द्वारा मिले सम्मान से अभिभूत श्रीमती सुशीला सोनी को जब दूसरे दिन कैलाश चंद्र अग्रवाल के निधन का समाचार मिला होगा तो उन पर क्या बीती होगी? इसका अंदाजा लगाना भी बड़ा मुश्किल है। मै अक्षर साहित्य परिषद और महादेवी महिला साहित्य समिति की विशेष चर्चा इसलिए कर रहा हूं कि 1999 मे अक्षर साहित्य परिषद के गठन से लेकर अब तक कैलाश चंद्र अग्रवाल हमारे साहित्य परिवार के कभी अध्यक्ष बन कर तो कभी संरक्षक बनकर हम सबको अपने स्नेह की छाया प्रदान करते रहे हैं जहां तक मै समझता हूं कि गठन से लेकर अब तक परिषद का ऐसा कोई भी कार्यक्रम नहीं हुआ होगा जिसमें कैलाश चंद्र अग्रवाल जी का तन मन धन न लगा हो ।

जग वाले खुब हंसे थे
जब आए हम रोते रोते
अब जग वाले रोएंगे
जाएंगे हम हंसते हंसते

उक्त पंक्तियों को चरितार्थ करते हुए हमारे पथ प्रदर्शक,सरल सहज व्यक्तित्व से परिपूर्ण कैलाश चंद्र अग्रवाल जी अपने भौतिक शरीर को छोड़ अनंत यात्रा मे चले गए,फिर कभी न आने के लिए…

कैलाश चंद्र अग्रवाल जी “आजाद शत्रु” थे मुख पर सदा मुसकान लिए अपनी मीठी वाणी से सबके हृदय को झंकृत करने वाले कैलाश चंद्र अग्रवाल जी को कभी भी हमने जरा सा भी किसी के प्रति क्रोध करते नहीं देखा। हमारे अक्षर साहित्य परिषद के संरक्षक के रूप मे उन्होंने हमे सतत सक्रिय रहने की प्रेरणा देते रहे और साहित्य सृजन के लिए प्रोत्साहित करते रहे।

गृहस्थ और सार्वजनिक जीवन जीने के बावजूद कैलाश चंद्र अग्रवाल जी का आचरण एक संत की तरह था जो सिर्फ जनकल्याण की भावना मे ही डूबे रहने का संकल्प लिए रहता है ।

मुक्ति धाम मे उनके पार्थिव शरीर को अग्नि देते समय जन सैलाब उमड़ पड़ा था।‌उपस्थित लोगों की आखें नम थी और लोगों के मुख पर अविश्वास और आश्चर्य भरे बोल ही निकल रहे थे ये कैसे हो गया ? अचानक वे हमे छोड़ कर कैसे चले गए? दाह संस्कार के बाद शोक सभा को सम्बोधित और संचालित करते हुए अक्षर साहित्य परिषद के संस्थापक अध्यक्ष आदरणीय डा.रमाकांत सोनी जी भी कैलाश जी के अचानक इस तरह जाने से व्यथित हो उठे थे और उन्होंने रूंधे गले से कैलाश चंद्र जी की आत्मा की शांति के लिए मौन धारण करवाया। यह क्षण बहुत भावुक था ।
कैलाश चंद्र जी के बेटे पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष राजेश अग्रवाल,राज अग्रवाल और पोते शैलेन्द्र (सैंकी ) अग्रवाल के गमगीन चेहरे को देखकर उपस्थित लोगों के चेहरे भी मुरझाए हुए थे। और वे सिर्फ हाथ जोड़कर अपनी संवेदना व्यक्त कर रहे थे ।

9 3.2023 को कैलाश चंद्र जी के निधन की सूचना जेसे ही नगर मे फैली सोशल मीडिया मे लोग अपने अपने भावों को शब्दों मे पिरोकर श्रद्धांजलि देने लगे थे पर मुझे संवेदना व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं मिल रहे थे या यूं कहूं कि मैं नि: शब्द हो गया था लेकिन साहित्यकार महेश राठौर भैया जी के लिखे इन पंक्तियों को पढ़ा तो दूसरे दिन यानि 10 3.2023 को मुझे संबल मिला और मै अपनी टूटी फूटी भाषा मे कैलाश अग्रवाल जी के प्रति अपनी भावांजली को शब्दों मे पिरोने का प्रयास किया।

. स्व. कैलाश अग्रवाल जी के प्रति-


क्षणभंगुर है देह यह, होता जिसका नाश।
नहीं चाहते भी अहो!, बँधे मृत्यू के पाश।।
जानें हम सब तथ्य कवि, फिर-भी रोते नैन।
हमें छोड़कर कहाँ गए, सरल-हृदय ‘कैलाश’
**** – महेश राठौर ‘मलय’

सरल सहज और सादगी के प्रतिमूर्ति के रूप मे जाने,जाने वाले कैलाश चंद्र अग्रवाल जी का व्यक्तित्व एक सर्वमान्य व्यक्ति के रूप में स्थापित था । मैं यह कहूं तो शायद कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि हम साधारण बोलचाल की भाषा में नगरपालिका अध्यक्ष को नगर का प्रथम नागरिक कह कर भले ही संबोधित करते हैं पर वास्तव मे व्यवहारिक और भावनात्मक रूप से कैलाश चंद्र अग्रवाल जी को नगर का प्रथम नागरिक माना जाता रहा है । यदि कैलाश चंद्र अग्रवाल जी के बाल अवस्था,युवा अवस्था मे किए गए संघर्ष के साथ ही विराट एवं सफल व्यक्तित्व के एक एक पहलुओं पर गौर किया जाए तो हर पहलुओं पर एक एक किताब लिखी जा सकती है। अंतर्राष्ट्रीय समाज सेवी संस्था लायंस क्लब के साथ ही दर्जनों संस्थाओं से जुड़े और अनेकों सम्मान प्राप्त करने वाले कैलाश चंद्र अग्रवाल जी ने कभी अपने सम्मान का प्रचार प्रसार नहीं किया बल्कि वे हमेशा लोगों को सम्मानित करते रहे हैं और लोगों के दुःख दर्द दूर करने अपने स्नेह की छाया प्रदान करते रहे हैं । ऐसे महामानव के अचानक स्वर्गारोहण से हम सभी स्तब्ध हैं । और प्रार्थना करते है कि ईश्वर उन्हें अपने श्री चरणों मे स्थान प्रदान करें ।ओम शांति

व्यवहारिक और भावनात्मक रूप से नगर के प्रथम नागरिक थे कैलाश चंद्र अग्रवाल,,, - Console Corptech
अनंत थवाईत की कलम से

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