जांजगीर चाम्पा

अक्षर साहित्य परिषद एवम् महादेवी महिला साहित्य समिति, चांपा का संयुक्त आयोजन,,,

सरसों पिंवरावत हे आमा मउरावत से , देख तो संगी बसन्त ऋतु आवत हे ।

साहित्य , संगीत साधकों के उल्लास का अलंकरण हैं बसंत !

बसंत जीवन के संपूर्ण अस्तित्व का सृजनात्मक राग हैं । सरस्वती के हाथों में शोभित वीणा संगीत की , पुस्तक ज्ञान की और मयूर कला की अभिव्यक्ति हैं : श्रीमति सुशीला सोनी ।

बसंत पंचमी प्रकृति का आनंदोल्लास पर्व हैं । देश‌ की सभी प्रमुख संस्कृतियों का सीधा संबंध बसंत से हैं । जीवन के उत्सव में उसे देखने कि क्षमता जुटाना ही बसंतोत्सव मनाना हैं । समस्त सृष्टि और प्रकृति का स्तोत्र भगवती सरस्वती हैं । देवी सरस्वती परम चेतना हैं । सरस्वती के रुप में वह हमारी प्रज्ञा , बुद्धि और विचारणा की संरक्षिका हैं । उपरोक्त विचार अक्षर साहित्य परिषद एवम् महादेवी महिला साहित्य समिति के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित वासंती काव्य संध्या , निराला जयंती एवं मां सरस्वती प्राक्ट्य महोत्सव के अंतर्गत डॉक्टर रमाकांत सोनी ने व्यक्त किये । संरक्षक कैलाश चंद्र अग्रवाल जी ने कहा कि आज ही के दिन देवी सरस्वती बम्र्हा जी के मानस में अवतीर्ण हुई थी और भगवान श्रीकृष्ण ने पहली बार सरस्वती पूजा की थी । भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा पूजन के बाद सभी देवी-देवताओं ने देवी सरस्वती पूजा की । महादेवी महिला साहित्य समिति की अध्यक्ष श्रीमति सुशीला देवी सोनी ने कहा कि वसंत जीवन के संपूर्ण अस्तित्व का सृजनात्मक राग हैं । सरस्वती के हाथों में शोभित वीणा संगीत की , पुस्तक ज्ञान की और मयूर कला की अभिव्यक्ति हैं । परिषद के अध्यक्ष लक्ष्मी प्रसाद सोनी ने कहा कि सरस्वती साहित्य , संगीत एवं कला साधकों को विचारणा की शक्ति , स्वर में मधुरता और कला में जीवंतता प्रदान करती हैं । वहीं परिषद के उपाध्यक्ष शशिभूषण सोनी ने वसंत को साहित्य , संगीत साधकों के उल्लास का अलंकरण निरुपित किया । कार्यक्रम का प्रारंभ मंचस्थ अतिथियों द्वारा भगवती सरस्वती एवं महाप्राण सूर्यकांत त्रिपाठी ‘ निराला ‘ की प्रतिमा समक्ष दीप प्रज्जवलन कर पूजन-अर्चन किया गया । तत्पश्चात् श्रीमति शांता गुप्ता द्वारा मां शारदें वंदना की मधुर प्रस्तुति दी गई । कार्यक्रम में पंडित रामगोपाल गौरहा , श्रीमति भुवनेश्वरी सोनी , श्रीमति उमा सोनी, सरोजनी सोनी , सत्यभामा साव, सुश्री दिव्या केशरवानी , संतराम थवाईत , श्रीमति शांता गुप्ता ने अपनी सरस रचनाओं से उपस्थित श्रोताओं को यह विभोर किया । कार्यक्रम का संचालन राजेश कुमार सोनी एवम् आभार रामनारायण सोनी ने किया ।

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कार्यक्रम के दुसरे सत्र की शुरुआत श्रीमति सत्यभामा ने अपने गीत ‘ लो आ गया फिर से वसंत ,पुरवइया के संग इठलाता गाने लगा वसंत ‘ सुनाकर वातावरण को वासंती बनाया । मुकेश सिंघानिया के ग़ज़ल जिंदा सोने का इत्मिनान तो हो लेने दो ।अपने होने का कुछ ज्ञान तो हो लेने दो , को लोगों ने काफी सराहा । सरोजनी सोनी ने छत्तीसगढ़ी अपने गीत सरसोंआ पिंवरावत हे आया मउरावत से , देख तो संगी बसन्त ऋतु आवत हे सुनाकर समां बांधा । वहीं राजेश सोनी ने तू कागज हैं , तू क़लम हैं , तू ही मेरी स्याही हैं लिखता हूं मां जब तुझकों , मिलती वाही वाही हैं , सुनाकर वाहवाही लूटी । भोलूराम मिली व बी एल महिलाने ने मुझको ऐसा मीत चाहिए , दुश्मन से भी प्रीत चाहिए रचनाएं सुनाई । शिक्षक किशन लठारे की छत्तीसगढ़ी रचना लहराने भारत के तिरंगा , भारत माता हैं दुल्हन बने से तीन रंग के लुगरा पहिले से सुनाया । श्रीमति उमा सोनी के गीत बसंती के आ जाने से मौसम वासंती हो गया ,वसंत के आ जाने से गणतंत्र वासंती हो गया ,के माध्यम वासंती चित्र खींचा ।कार्यक्रम में यज्ञनारायण सोनी, कबीर, अजय यादव,रविंद्र कुमार पाण्डेय,खूबचंद देवांगन,खेमराज देवांगन, मानसाय देवांगन , किशन लठारे , शिवशंकर केवट आदि की उपस्थिति सराहनीय रही ।

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