बिलासपुर

हसदेव बचाने बिलासपुर में बनी मानव श्रृंखला …हसदेव_बचाओ

बिलासपुर-आपको हसदेव अरण्य के बारे मे कुछ बताते है

हसदेव एक छोटे से कुण्ड से निकली एक विशाल नदी है जो अपने साथ साथ एक विशाल जंगल और विस्तृत सिंचित क्षेत्र प्रदान करती है, यहाँ के स्थानीय निवासियों का हसदेव घर ही नही अर्थव्यवस्था भी है, तेंदूपत्ता, महुवा फूल,साल , सागौन व औषधियों से भरा पूरा यह हसदेव अरण्य अपने साथ साथ अनेक प्राणियों का निवास स्थल भी है,

हसदेव अरण्य सिर्फ एक जंगली क्षेत्र या कोयला क्षेत्र नही है बल्कि वहां रह रहे लोगों, जंगली जानवरों, पेड़ पौधों, पशु पक्षियों, नदी घाटियों में फलती फूलती एक संस्कृति है जिसे आप सभी छत्तीसगढ़ का फेफड़ा के नाम से जानते हैं,
बिजली की कमी के कारण हसदेव क्षेत्र के अंदर छिपे कोयले का उत्खनन करना आप के लिए विकास हो सकता हैं, वहाँ के मूलनिवासी जिन्हें आप केवल आदिवासी समझते हैं उनके लिए यह विनाश होगा, जंगलों के क्षेत्रफलों में वृद्धि करना जैवविविधता को आगे बढ़ना इसे वे विकास समझते हैं और करते आये हैं,

कुछ कह रहे “हसदेव बचाओ आदिवासी बचाओ” आदिवासी सिर्फ एक जाति सूचक शब्द नही बल्कि यह एक जीती जागती संस्कृति है जो यहाँ निवासरत है, यहाँ निवासरत हर वर्ग का व्यक्ति प्रकृति प्रधान संस्कृति पर विश्वास करता है और वनों को नष्ट नही बल्कि उनको पूजता है,

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विकास के नाम पर जंगल को काटा जा रहा, वहाँ साल सागौन अनेक बड़ी छोटी लकड़ियों का व्यवसाय होगा कोयले से सरकार को भी लाभ होगा, पर हम सबको इसके बदले सिर्फ प्रदूषित वातावरण ही मिलेगा, ऑक्सीजन की कमी,पीने योग्य पानी नही, गर्मी अधिक, सिंचित भूमि में कमी या नही ये सब हमारे / आमलोगों के हिस्से आएगा,

जहां एक ओर संविधान हमे मौलिक अधिकार देता है शुध्द अच्छी वायु व जल ग्रहण करने का वही राज्य को भी पर्यावरण संरक्षण का निर्देश देती हैं, फिर भी न हमारे अधिकारों की रक्षा हो रही न पर्यावरण की,

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