आनंदोत्सव पर भगवान श्री कृष्ण जी की दिव्य युगल छवियां और मनमोहक रुप में सात महिनें की शिवी झांकियां ।
सबको मोहे कृष्ण पिया दिव्या, नव्या और शिवी स्वर्णकार रे
चाम्पा – 19 अगस्त 2022
राधा-कृष्ण ! एक ऐसा नाम जो दो-होते हुए भी एक हैं । एक आत्मा दो-शरीर एक को ही कहते हैं । कृष्ण, राधा को छोड़कर चले गए ? क्या आत्मा शरीर के बिना रह सकती है•••तो कृष्ण कैसे रह सकते हैं,यह धार्मिक विषय हैं। भाद्र की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाने वाला श्रीकृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव कोसा , कांसा एवं कंचन की नगरी चांपा के विभिन्न मंदिरों में 19 अगस्त 2022 को दुर्लभ संयोग के साथ मनाया जा रहा हैं । अंचल में आठें कन्हैया के नाम से प्रसिद्ध यह पावन पर्व जगदीश्वर भगवान श्रीकृष्ण के अवतरण दिवस के रुप में मनाया जाता हैं । सावन महिनें से ही सदर बाजार स्थित श्री राधा-कृष्ण मंदिर, जगन्नाथ बड़े मठ मंदिर,डोगाघाट मंदिर, श्रीकृष्ण गौशाला परिसर सहित विभिन्न स्थानों पर श्रीकृष्ण मंदिर को आकर्षक ढंग से सजाया गया हैं।
बचपन ईश्वर का दुसरा नाम हैं। भगवान श्रीकृष्ण का बाल रुप इतना मनोहारी हैं कि श्रद्धालु भक्त उनकी इसी रुप को ज्यादा पसंद करते हैं । जैसे घर में शिशु जब जन्म लेता है तब उसकी बाल लीला आठों पहर मन को शुद्ध रखती हैं ठीक उसी तरह सोलह कलाओं से युक्त भगवान् श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं को हर मनुष्य पसंद करता हैं और जन्माष्टमी पर्व पर भगवान के इसी रुप की पूजा की जाती हैं।
सदर बाजार,चांपा स्थित श्री राधाकृष्ण जी का मंदिर की स्थापना पांच दशक पूर्व रुढ़मल अग्रवाल कोरबा रोड चांपा के द्धारा की गई थी । यहां पर श्रीकृष्ण और रामनवमी जन्मोत्सव महोत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता हैं । नगर के श्रद्धालु नवयुवकों की टोलियां समूहों में गाजे-बाजे के साथ जन्माष्टमी पर्व मनाने निकल गई हैं। विभिन्न स्थलों पर सुबह से लेकर शाम तक मटकियों में दूध , दही , घी , मिठाईयां , फल और चाकलेट रखी जा रही हैं । नाच-गाने के साथ एक दुसरे के ऊपर चढ़कर मटकियां फोड़ेंगे और बधाईयां देंगे। इस संबंध में पूर्व पार्षद श्रीमती शशिप्रभा सोनी और शांता गुप्ता ने बताया कि नगर में कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव बहुत ही श्रद्धा पूर्वक मनाया जाता हैं। सभी धर्मावलंबी ऊंच नीच पवित्र-अपवित्र की भावना को दरकिनार कर मंदिरों में उपासना के लिए जाते हैं । वास्तव में भगवान श्री कृष्ण जी का जन्मोत्सव हमारे लिए एक प्रकार का आनंदोत्सव हैं । इस दिन कृष्णचंद्र भगवान का पूजा अर्चना करने से कई गुना ज्यादा पुण्य प्राप्त होता हैं। 5248 साल गुजर जाने के बाद भी भगवान श्री कृष्ण की लोकप्रियता एवं उनकी बाल लीला हम सबके लिए आकर्षण एवं अव्दितीय हैं । श्रीमति शीला स्वर्णकार ने अपनी नन्ही शिवी बेटियां को भगवान श्रीकृष्ण के बाल रुप में सजाई हैं। इसी तरह श्रीमति शांता गुप्ता ने अपनी जुडूवां सुपुत्री दिव्या केशरवानी कृष्ण और
नव्या केशरवानी को राधा के रुप में सजाई हैं और उसके सिर पर मोर पंख दर्शनीय हैं। डॉक्टर अमित स्वर्णकार ने बताया कि भगवान श्री कृष्ण जब बाल रुप में मुरली बजाते हैं और मोर पंख धारण करके नाचते लगते हैं तो यह रुप मुझे बहुत प्रिय हैं मैंने अपनी सुपुत्री सुश्री शिवी स्वर्णकार को इसी रुप में पदस्थ सजाया हैं और उसके किनारे श्रीकृष्ण जी की प्रिय वस्तुओं को रखा हैं । शिवी स्वर्णकार के चेहरे पर मुस्कान देखकर हम सब ख़ुशी से झूम रहें हैं। छोटी-सी परी मात्र साढ़े सात महिनें की बच्ची शिवी का दर्शन करने मुहल्लें के लोग देखकर मंँत्रमुग्ध हो रहे हैं । साढ़े-सात महिनें की शिवी और दोनों जुड़वां बहनें दिव्या और नव्या बेटियां को देख आध्यात्मिक संबल मिलता हैं । भगवान श्री कृष्ण मां के लाड़ले थे वैसे ही शिवी अपनी मां शीला स्वर्णकार की लाड़ली बेटी हैं । यशोदा मां की तरह दिनभर उसकी देखभाल करती हैं । वह लोरी गाती हुई दूध पिलाती हैं और कहती हैं ” कितनी बेर मोहि दूध पियत भइ यह अजहु मैं छोटी सी बच्ची ! ” यशोदा जी का कृष्ण के प्रति वात्सल्य और कृष्ण की बाल लीलाएं मनमोहक हैं। सब पर कृष्णचंद्र की कृपा बनी रहे , जन्माष्टमी की मंगलकामनाएं ।