धार्मिक

उत्तरांचल यात्रा ! प्रकृति और आस्था की अनुपम छटा : हरिद्वार

चाम्पा – 30 जुलाई 2022

चातुर्मास में श्रावण मेला देखकर वापस लौट रही हैं सामाजिक कार्यकर्ता श्रीमति शशिप्रभा सोनी

मेला दिलों को उत्साह और ताज़गी से जोड़ता हैं , इसीलिए तो कहा जाता हैं मेला दिलों को पास लाता हैं •••••••

बद्री और केदार की धरती , हरिद्वार जग पावन हैं !
ऋषियों की यह तपस्थली प्रकृति शोभा मन-भावन हैं!!

। हरिद्वार भारतवर्ष का एक पौराणिक तीर्थ-स्थल है । चातुर्मास विशेषकर श्रावण में सांसारिक महत्वाकांक्षाओं से दूर रहने वालें श्रद्धालु भक्त सावन मेला देखने प्रतिवर्ष जाते हैं , यह मेला शिव मंदिरों के आसपास वाली खाली जगह पर लगती हैं । हरिद्वार से मात्र चार किलोमीटर दूर भगवान् भोलेनाथ जी को समर्पित एक दक्ष मंदिर हैं । इस मंदिर का निर्माण सन् 1810 में रानी कुंवर दनकौर जी ने करवाई थी । पौराणिक ग्रंथों और कथाओं में यह बात वर्णित हैं कि देवी सती के पिता भगवान शिवजी से जलते थे । एक बार इन्होंने दक्ष प्रजापति ने बृहस्पति नामक यज्ञ किया ।सब देवताओं को आमंत्रित किया किन्तु देवाधिदेव महादेव एवं उनकी पुत्री सती को नहीं बुलाया । पिता के घर यज्ञ होने की बात सुनकर शिवजी के मना करने पर भी सती बिना बुलाए पिता के घर चली गई।यज्ञ में अपने पति शिवजी का भाग न देखकर तथा पिता द्वारा भरे समाज में शिवजी की निंदा सुनकर सती को क्रोध आया कि इससे शिवजी का अपमान हुआ हैं । अपमानित सती महायज्ञ की अग्नि में कूद गई । शिवजी क्रोधित हो गए। शिवजी ने अपने गणों द्वारा यज्ञ विध्वंस कराकर तथा दक्ष प्रजापति का सिर कटवा कर अग्नि कुंड में डलवा दिया ।सती का शव कंधे पर रखकर सर्वत्र घूमते हुए तांडव करने लगे । तब विष्णु ने चक्र से सती के शरीर के टुकड़े काट-काट भारत भर में 51 स्थानों पर गिराये ।ये ही 51 स्थान 51 शक्तिपीठ हुए । इसीलिए हरिद्वार के इस स्थल को माया क्षेत्र नाम पड़ा।इस क्षेत्र के दर्शन करने मात्र से जन्म जन्मांतर के पापों से छुटकारा मिल जाता हैं। यज्ञ कुंड के इस स्थान पर श्रावण मास में बड़ा मेला लगता हैं। मुख्य बाजार से दक्ष प्रजापति मार्ग पर एक किलोमीटर आगे बढ़ने पर दक्ष प्रजापति का बहुत ही सुंदर मंदिर हैं । श्रावण मास में भगवान शिवजी का पारंपरिक तरीक़े से पूजा-पाठ , अर्चना , अभिषेक एवं अन्य अनुष्ठान होते हैं । लाखों की संख्या में शिवभक्त हरिद्वार, ऋषिकेश, गंगोत्री यमुनोत्री आदि स्थानों से पवित्र गंगाजल भरकर अपने अपने क्षेत्र के शिवालयों में जलाभिषेक करते हैं। बड़ी संख्या में युवावर्ग तो आते ही हैं कुछ बड़े बुजुर्ग , महिला और बच्चें भी पुण्य लाभ अर्जित करने कांवड़ उठाते हैं । यहां मां गंगा की पावन स्थली कल-कल धारा देखने लायक़ हैं । लाखों-करोड़ों श्रद्धालु मां गंगा की आरती देखने एवं अपनी-अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु प्रतिवर्ष दर्शन-पूजन करने आते हैं और गंगा महाआरती देखने के बाद डुबकी भी लगातें हैं । यहां हर छह वर्ष में अर्द्ध कुंभ मेला और बारह वर्ष में पूर्ण कुंभ मेला का आयोजन भी होता हैं । मां गंगा सभी की मनोकामनाएं पूरी करतीं हैं ।

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उक्त बातें सामाजिक कार्यकर्ता एवं ‘ गंगोत्री से गंगा चार धाम की यात्रा ‘ विषय साहित्यिक पांडुलिपि ग्रंथ लिखने वाली श्रीमति शशिप्रभा सोनी ने श्रावण मास में आशुतोष भगवान् शिवजी के पावन स्थली उत्तरांचल यात्रा समाप्त हो जाने के पश्चात् आज़ वापसी के दौरान यह बातें कहीं ।

निर्मल बहती गंगा की धारा ,

हर मनुष्य का द्वार हैं हरिद्वार ।

यह वास्तव में हरि का द्वार ,

पाया हैं मैंने दर्शन मां का व्दार ।।

साहित्यिक जीवन की स्वर्णिम यात्रा का अध्याय खोलते हुए महादेवी महिला रत्न से सम्मानित श्रीमति शशिप्रभा सोनी ने बताया कि जब समुद्र मंथन से अमृत निकला । तब उस अमृत का रसपान करने के लिए राक्षस वंश के लोग टूट पड़े और इधर-उधर भागने लगे जिससे अमृत की कुछ बूंदें जिस स्थान पर गिरी थी उसी स्थान को हर की पौड़ी यानि कि ‘ ब्रम्हा का कुंड ‘ माना जाता हैं । हरिद्वार आने वाला हर श्रद्धालु जन इस पवित्र स्थल हर की पौड़ी में जरुर आता हैं । दो-वर्षों तक कोराना संक्रमण काल में यात्रा प्रतिबंधित रहने के कारण मैं यात्रा पर नहीं जा पाई थी । श्रावण मास में आशुतोष भगवान् भोलेनाथ जी का बुलावा आया और वह यात्रा पर निकल गईं । उन्होंने बताया कि मेला लोक का पर्व हैं , श्रद्धांलुजनों का महात्म्य उत्सव हैं । वैसे तो हरिद्वार में वर्ष भर लोगों की भीड़-भाड़ लगी रहती हैं लेकिन श्रावण मास में यहां एक माह तक मेले का आयोजन होता हैं । अन्यान्य प्रदेशों से आकर लोग कुशावर्त , बिल्वकेश्वर , नील पर्वत और कनखल जैसे तीर्थ स्थल पर पहुंच कर दर्शन लाभ लेते हैं , जिससे काफी भीड़ जमा हो जाती हैं। मान्यता हैं कि इनमें स्नान तथा दर्शन करने से पूर्वजन्म नहीं होता । शशिप्रभा जी ने यह भी बताया कि हरिद्वार के गंगा घाट पर शाम को महाआरती में हजारों-लाखों की संख्या में श्रद्धालु भक्त शामिल होते हैं । यहां पर पतित-पावनी मां गंगा तेज़ धारा के साथ प्रवाहित होती हैं । हम लोगों ने यहां-वहां मां गंगा के तट यानि कि हर की पोड़ी पर अपनी बड़ी दीदी श्रीमति रामकुमारी सोनी और एनटीपीसी , सीपत बिलासपुर छत्तीसगढ़ में उप-महाप्रबंधक के रुप में कार्यरत सत्यनारायण सोनी भाईजी के साथ पुष्पांजलि अर्पित कर स्नान-दान एवं अन्यान्य मंदिरों के दर्शन का आनंद उठाया

हरिद्वार इमें मंदिरों और आश्रमों की निराली छटाएं देखते ही बनती हैं। शाम के समय में हर की पौड़ी अद्भुत और भव्य नज़र आती हैं। धार्मिक दृष्टिकोण से भी यह एक पवित्र , पूजनीय और, पुरातनकाल भूमि मानी जाती हैं । किन्तु आज़ कलयुगी अवतार में गंगा मैया भी थोड़ी-सी ” हाई प्रोफ़ाइल ” हो गई हैं । पहले तो सबको अपने पावन सान्निध्य में लेकर उनके पापों को मसल-मसल कर धो देती थी , लेकिन आज़ विकास की अंधी दौड़ और मानव निर्मित पर्यावरण प्रदूषण ने इसे क़रीब-करीब गंदा पानी बना दिया हैं । उत्तराखंड के विष्णु प्रयाग से अलकनंदा नदी और गंगोत्री से भागीरथी नदी देवप्रयाग में आकर संगम में मिलती हैं , फिर गंगा बनकर पहाड़ों से मैदानी इलाकों में उतरती हैं । गंगा मैया जहां -जहां से गुजरती गई , वहां-वहां के लोगों का जीवन चरित्र , जीवन स्तर निर्मल होते गया । इसीलिए गंगा मैया के जल को अमृत माना जाता हैं , लेकिन आज जिस प्रकार से गंगा के किनारे बन रहें अपार्टमेंट्स , आलीशान हांटल और उससे निकलने वाले प्रदूषित पानी से हमारी-आपकी गंगा मैली होती जा रही हैं । गंगा को प्रदूषण से मुक्त रखने के लिए हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी जी अच्छा कार्य कर रहे हैं । हिमालय से निकल कर वनस्पतियां और औषधियों को के बहाकर लाती हुई गंगा मैया का निर्मल जल , जो कभी सड़ता नहीं था । कहनें पर दुःख हो रहा हैं कि यह स्नान तो क्या आचमन करने लायक भी नहीं हैं । अब बात सर से ऊपर तक पहुंच गई हैं जब साक्षात् गंगा मैया ने ही शरण में लेने से मना कर दिया हैं , तो फिर कोशिश की जाती हैं कि कठौती में गंगा मैया को देखनें की ? मगर वो तब दिखें , जब- हम सब अपने मन की कालिख को धोंकर उसे शुद्ध रुप से धवल-वणित कर पाएं । आज केंद्र और राज्य सरकारें तो दूर-दूर की बात हैं लोगों को गंगा नदी को साफ़ करने इतनी-सी औकात कहां-कहां ? इसीलिए जब-तब गंगा में पानी कम दिखें या मैंली दिखें तो फिर लगता हैं कि ” मन तो चंगा है, जरूर कठौती में कुछ पंगा हैं ?


गंगा एक अत्यंत मनोहारी पावन नदी हैं । इसी हरिद्वार में ही ब्रम्हा जी ने विराट यज्ञ और अनुष्ठान किया था । महाभारत काल के समय में भीमसेन गंगा की गति का निरीक्षण करने पहुंचे थे । भारतीय सभ्यता संस्कृति की आधार हैं , संगीत की दृष्टि से भी पतित-पावन मां गंगा ने सबको समृद्ध किया हैं । हम सबको उसका सम्मान करतें हुए स्वच्छता अभियान के लिए प्रण-प्राण से जुट जाना चाहिए , यही समय की मांग भी हैं । जय मां गंगें । हर-हर गंगें । हर हर महादेव ।

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