जांजगीर चाम्पा

आजादी का अमृत महोत्सव ! वक्त के शिलालेख पर एक रौशनी आज भी प्रकाशित हैं डॉक्टर शांतिलाल गोपाल की यादें…

जांजगीर चाम्पा – 14 अगस्त 2022

धन्य हैं ऐसे जांजगीर-चांपा जिले के देशभक्त एवं अमर स्वतंत्रता सेनानी डॉ• शांतिलाल गोपाल

75-वां अमृत महोत्सव पर जागृत हुई इतिहास और अनसुनी कहानियां ।

यह वर्ष हमारी स्वतंत्रता दिवस का अमृत महोत्सव हैं , जिन देशभक्तों ने भरी जवानी में अपने घर परिवार को तब्जों न देकर इस देश को आजाद कराया हैं , जिन्होंने देश के आगे जाति, धर्म भाषा या मज़हब को महत्वहीन समझा, उन ज्ञात-अज्ञात स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को याद करते हैं तो हम कैसें ••?
सिर्फ़ दो-मिनट का मौन धारण कर श्रद्धांजलि अर्पित कर देते हैं । लच्छेदार भाषणों,ऊंची-ऊंचीं बातों और तथ्यों से थाल सजाकर मात्र उनकी आरती उतार लेते हैं , क्षणिक अनुभूति की लौं जलाकर पुष्पांजलि अर्पित कर स्मरण कर लेते हैं और फ़िर वही ढाक के तीन पात •••• यानि कि साल भर के लिए उनकी स्मृतियों को अलविदा कहकर अपने अपने कार्य में सिमट जाते हैं । वास्तव में हमारे देश की आजादी की लड़ाई में इनकी अविस्मरणीय भूमिका रही हैं । आज़ की नई पीढ़ी अपने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के विषय में नहीं जानती । यदि हम अपनें आसपास प्रदेश , जिला, नगरों या कस्बों में आजादी के इतिहास को थोड़ा-सा भी खगालें तो हमें किसी भूलें-बिसरें सेनानी की सच्ची तस्वीर मिल जायेगी । यह और भी खुशी की बात हैं कि इस बार स्वतंत्रता दिवस को इस वर्ष “अमृत महोत्सव ” के रुप में केन्द्र और राज्य सरकारों के द्वारा मनाया जा रहा हैं । हर घर-घर तिरंगा अभियान चलाकर भारत-माता का मान बढ़ाया जा रहा हैं । स्वतंत्रता दिवस की 75-वीं वर्षगांठ पर देशवासियों को अनगिनत बधाई देते हुए उन शहीदों को भी पुण्य स्मरण हमें अभूतपूर्व शक्ति,त्याग और आत्म बलिदान की प्रेरणा देता हैं । हमें स्मरण दिलाता हैं कि आज़ादी का मार्ग शीतल हवा में पुष्प वाटिका का नहीं बल्कि कांटों का हैं । आज़ स्वतंत्रता दिवस पर उन भूले-बिसरे आज़ादी के ज्ञात-अज्ञात क्रांतिकारियों, गांधी वादी दृष्टिकोण रखने वाले सदपुरुष व्यक्तियों को इस उमंग भ रें त्यौहार पे श्रद्धासुमन अर्पित करता हूं और एक आलेख श्रीमति शांति थवाईत की क़लम से प्रस्तुत हैं ।

आज़ के इस पावन पर्व पर कोसा, कांसा एवं कंचन की नगरी चांपा के प्रसिद्ध गांधीवादी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, डॉक्टर शांतिलाल गोपाल जी की ही कहानी हैं । वे कोई सेलिब्रिटी या दुसरे शब्दों में रुपहले पर्दे पर अभिनेता के जैसा फेवरेट नहीं हैं , बल्कि आजादी की लड़ाई में लड़ने वाले असली योद्धाओं में से एक योद्धा हैं , जो आजादी की लड़ाई और उसके पश्चात् चांपा नगर के जनता-जनार्दन की सेवा में अपना नाम अमर कर गए हैं ।इनका देश ही नहीं बल्कि चांपा नगर के विकास में अतुलनीय योगदान रहा हैं। इनके अतुलनीय योगदान को देखते हुए छत्तीसगढ़ शासन के द्वारा प्रतिवर्ष स्वतंत्रता दिवस पर जब तक जीवित रहे हैं ताम्र पत्र,श्री फल, शाल और प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया जाता रहा हैं और आज़ भी यह प्रशस्ति पत्र गोपाल जी के निवास स्थल पर मौजूद हैं।
ऐसे महान् विभूति कभी मरते नहीं और ना ही मरेंगे वे सदैव हमारी और आगे आने वाली पीढ़ियों के हृदय में सतत् याद आते रहेंगे । पेशे से चिकित्सक लेकिन उससे पहले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहें शांतिलाल गोपाल जी, जो कि रिश्तें में मेरे बड़े पिताजी थे , जिन्हें हम छत्तीसगढ़ी भाषा में ‘बबा कहकर ‘ संबोधित करते थे । हमारा और उनका घर आमने-सामने ही नहीं बल्कि एकदम घरेलू संबंध था । ताज्जुब की बात यह भी है कि ” मेरा नाम भी शांति व उनका नाम भी शांतिलाल गोपाल ! एक दिन मेरी मां से मैंने मेरे नाम को लेकर पूछा था कि बबा जी के नाम जैसें मेरा नाम आप लोगों ने आखिर क्यों रखा •••? इस पर मेरी मां का उत्तर था “उनके कार्यो को देखकर प्रेरणा लेते हुए तुम्हारा नाम शांति रखा गया ! ‘

अक्सर शाम को मैं बबा जी के पास जाकर उनके घर पर बिताती थी । जब भाभी नहीं रहती थी तो मैं खाना वगैरह भी बना देती थी । कभी-कभी बबा अपने पैरों की मालिश करवाते थे तब मैं उनको बोलती थी कि मैं आपका पैर तब दबाऊंगीं जब आप मुझें आज़ादी के क़िस्से सुनाएंगे । तब बबा जी मुझें बड़े ही प्यार से कुछ ना कुछ दिलचस्प और रोचक बातें बतलात थे । कैसे वो कालेज के समय में महात्मा गांधी जी से प्रभावित हुए और उनके विचारों को आगे बढ़ाते हुए छत्तीसगढ़ के गांधी वादी विचारक पं सुंदर लाल शर्मा के संपर्क में आए और मिलकर छत्तीसगढ़ में स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़ें । जब महात्मा गांधीजी रायपुर आए थे तो बबा ने उनसे मुलाकात भी किया था । आज़ मैं उन सभी बातों को अपने शब्दों में समेटकर प्रस्तुत कर रही हूं ।

बात उन दिनों की हैं, जब पूरे भारतवर्ष में स्वतंत्रता के लिए भारत छोड़ो आंदोलन चल रहा था । 9 अगस्त, 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन प्रारंभ हुआ। जन-जन के नेता महात्मा गांधी के नेतृत्व में यह आंदोलन चलाया गया था । छत्तीसगढ़ में पंड़ित सुंदर लाल शर्मा जी व उनके सहयोगियों के द्धारा कमान संभाला गया था । डांक्टर शांतिलाल गोपाल जी उस समय कालेज के छात्र थे । युवावस्था में आजादी के दीवाने थे, देश की आज़ादी के लिए मर मिटने को तैयार रहने का जज़्बा ही कुछ अलग था । गोपाल जी भी आंदोलन मे बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहें थे । चांपा नगर की छोटी-छोटी गली-मुहल्लें में जाकर लोगों को जाग्रत करना , बैठक आयोजित करके बहुत ही गोपनीय ढ़ंग से कार्यक्रम की रुपरेखा तय करना , सभा करना , नारेबाजी करना सब कामों में अव्वल रहने वाले बबा ( गोपाल जी ) पूरे जोश के साथ आंदोलन में भाग लेते हुए आगे बढ़ते चले जा रहे थे । जब आंदोलन चरम स्थिति में था तो अपने साथियों के साथ रेल की पटरियों को उखाड़ कर अंग्रेजों के ख़िलाफ़ बिगुल फूंक दिया । रेल की पटरी उखाड़ने में बबा जी और उनके साथियों का नाम सामने आने से वो अंग्रेजों की नज़रों में हिटलिस्ट में आ गए थे । उनके ख़िलाफ़ गिरफ़्तारी वारंट जारी हुआ । अंततः अंग्रेजों से आंख-मिचौली खेलते हुए अंग्रेज़ों की आंखों में बबा जी ने धूल झोंकना शुरु कर दिया । एक दिन अंग्रेज़ सिपाही उनको खोजते हुए मुहल्लें में आ गए । उसी समय बबा जी भनक लगते ही अपने दो-साथियों के साथ साधु की वेशभूषा में मुहल्लें से बाहर निकले और अंग्रेज़ो के नाक के नीचे से चले गए । अब उनके सामने प्रश्न लग गया कि आखिर जाएं तो कहां जाएं ••? उन्होंने कुछ दिनों तक छुप-छुपकर आंदोलन को संचालित किया। बबा जी बहुत ही कुशाग्र बुद्धि के इंसान थे । वे अपने साथियों के साथ चांपा में हसदों नदी मे डोंगाघाट के तट से नाव पे सवार होकर केरा झरिया में स्थित साधु की कुटी में साधु का वेशभूषा धारण कर रहने लगे । इस महती कार्ययोजना में तपसी बाबा ने उनका साथ दिया । ज्ञातव्य हैं कि डोगाघाट मंदिर के तपस्वी ‘ तपसी बाबा ‘ एक महान् संत थे । उनके विषय में कहा जाता था कि उनके अंदर अदृश्य शक्तियां थी , अद्भुत कला विघमान थी , वो हसदो नदी में बाढ़ आने पर भी प्रतिदिन नदी को चलकर पार कर जाते थे । उन्होंने बबा जी की सहायता की ।चांपा के डोंगाघाट मंदिर में आज भी तपसी बाबा की मूर्ति विराजित हैं , जिसकी नित्य पूजा अर्चना होती हैं । तपस्वी बाबा किसी के घर नहीं जाते थे ,विकट परिस्थितियों में ही आदर और सम्मान होने पर जाते थे। तपसी बाबा का किसी के घर पांव रखना बहुत ही शुभ माना जाता था , बबा जी उनके प्रिय शिष्य थे उनको तपसी महाराज बहुत स्नेह करते थे । इसीलिए तपसी महाराज का उनके घर आना-जाना लगा रहता था ।

कुछ दिनों तक छिपते-छिपातें समय व्यतीत किया और आंदोलन का काम संचालित होता रहा । अनेकों बार बबा को अंग्रेज़ी सिपाहियों की नज़रों से छुपने के लिए बबा व उनके साथियों को कभी औरत ,कभी साधु, कभी अन्य वेशभूषा धारण करना पड़ा।
अंग्रेज़ी सरकार के द्धारा आंदोलन कारियों की गिरफ़्तारी जैसे-जैसे तेज़ होने लगी । बबा को भी गिरफ़्तार कर लिया गया और जेल में डाल दिया गया ।जेल के अंदर भी उनका आज़ादी के प्रति जज़्बा कम नही हुआ । जेल में ही आज़ादी के नारे गूंजने लगा । जेल में ही उन्होंने अपने साथियों के साथ अनशन करना शुरु कर दिया । इसी बीच भारत की स्वतंत्रता की बातें होने लगी ।ब्रिटिश सरकार ने भारतवर्ष को स्वतंत्र करने का निर्णय लेते हुए जितने भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे सबको छोड़ने का आदेश जारी कर दिया और आख़िरकार 15 अगस्त 1947 को भारत आज़ाद हुआ । आजाद भारत में अपना संविधान बना, नए नियम और क़ानून बनें प्रथम आम चुनाव हुआ और नगरपालिका चुनाव में हमारे बबा डॉक्टर शांतिलाल गोपाल सर्वसम्मति से नगर अध्यक्ष बनें। उनकी अध्यक्षीय कार्यकाल में चांपा का चहुंमुखी विकास हुआ । वर्तमान में जो शासकीय बालक उच्चतर माध्यमिक विद्यालय हैं, उसमें पहले जनभागीदारी से कालेज संचालित होता था। पूर्व नपाध्यक्ष और वर्तमान में नब्बे वर्ष की अवस्था में भी स्वस्थ जीवन जी रहे रामचरण सोनी पदाधिकारियों में शामिल थे। उन्होंने कालेज संचालित करने के लिए अपनी जमा पूंजी न्यौछावर कर दिया था। हांलांकि बाद में शासन की ओर से चांपा नगर में महाविद्यालय खुला । श्रीमति शांति थवाईत ने अपने संस्मरण को आगे बढ़ाते हुए कहा कि जिस महाविद्यालय में मै सन् 1993-94 में अध्यक्षा थी वह स्थल पूर्व में वहां बालको का छात्रावास था , ज़हां आसपास के बच्चें अध्ययन हेतु आते थे। आज़ जहां आत्मानंद इंग्लिश स्कूल संचालित हैं , उस भवन को निर्माण करने का श्रेय हमारे बबा शांतिलाल गोपाल जी को ही जाता हैं उन्होंने अपने अध्यक्षीय कार्यकाल में भवन का निर्माण करवाया था । आज़ भी वह भवन मज़बूत हैं, उनके साक्षी का निशान हैं ।
चांपा शहर का पहला आलीशान घर गोपाल जी का ही था , जिसे लोग दूर-दूर से देखने के लिए आते थे । उनका अपना क्लीनिक था । ज़हां मरीज़ इलाज करवाने आते थे । आज़ न तो वैसा कोई भवन बन रहा हैं और ना ही भवनों में मजबूती हैं । सारी व्यवस्था चरमरा गई हैं । ख़ैर जो भी हो लेकिन मैंने एक अच्छे व सच्चे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के साथ बहुत कीमती वक्त बिताया हैं इसका मुझें फक्र हैं लेकिन अफ़सोस इस बात का होता हैं कि इतने प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी होने के बावजूद आज़ तक उनको उचित सम्मान नही मिला है ।चांपा शहर में उनके नाम से कोई भी चौंक-चौराहा ,भवन ,गली मुहल्ला नही हैं ? कांग्रेस के इतने वफादार रहने के बावजूद ,उनकी उपेक्षा समझ से परे हैं । इससे पहले जब भाजपा की सरकार थी तब उनके कार्यकर्ताओं के द्वारा घर आकर आश्वासन दिया गया था कि कुछ ना कुछ तो उनके नाम से शहर जाना जाएगा । सब फ़ोटो खिचवाए और चले गए और बातें टांय-टांय फीस हो गया । कांग्रेस पार्टी की सरकार बनने पर परिवार वालों को उम्मीद जगी थी कि कुछ नामकरण गोपाल जी के नाम से होगा, परन्तु शायद ना उम्मीद ही होना पड़ेगा ऐसा लगता हैं , वर्तमान नपाध्यक्ष जय थवाईत इस दिशा में ध्यान देकर गोपाल जी का सम्मान करें।

नव अगस्त , 2022 आज़ादी के अमृत महोत्सव के तहत् श्रीमति मधु गोपाल ( शांतिलाल की बहू ) को बुलाकर विधानसभाध्यक्ष डॉक्टर चरणदास महंत जी के हाथों सम्मानित किया गया। परन्तु मेरी नज़रों में हमारे बबा जी का असली सम्मान तब होगा जब चांपा शहर में कोई चौक-चौराहा या फिर गली-मुहल्ला उनके नाम से जाना जाएं । मेरा सुझाव यह हैं कि उनके निवास स्थान जिसको रानी रोड के नाम से जाना जाता हैं , उसे रानी रोड डॉ शांतिलाल गोपाल स्वतंत्रता संग्राम सेनानी गली के नाम से जाना जाएं तो सच्ची श्रद्धांजलि होगी । अंत में इन शब्दों के साथ श्रद्धासुमन अर्पित हैं •••••

*🍁स्वर्गीय डॉ शांतिलाल गोपाल जी अमर रहे,
*🍁हमर बबा जुग-जुग तक अमर रहें ।
*🍁चले थे जो सर पर कफ़न बांधकर ,
*🍁आज़ादी के मतवाले बन झूम-झूम कर।
*🪸खुली हवा में हम जो सांस ले रहे हैं,
*🪸ख़ून पसीनें के छिटे जिनके हर दीवार पर।
*🪸एक इबादत लिखना बाकी हैं सरकार को,
*🪸उचित मान-सम्मान दिया जाए उनके नाम पर।।

इन्हीं कामनाओं के साथ आज़ के नेताओं से पुनः आत्म निवेदन जो पूर्वजों की कुर्बानी को कैश करा रहें हैं उनके नाम को रौशन करने के लिए ईमानदारी से कुछ तो करे।जय हिंद ,जय भारत ।

श्रीमति शांति थवाईत व्याख्याता राजनीति विज्ञान शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय कुरदा चांपा प्रस्तुतकर्ता और लेखनबद्ध : शशिभूषण सोनी

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