धार्मिक

आज़ गंगा दशहरा । गंगा तेरा पानी हैं कितना अमृत •••••!क्या आज के भागीरथ अपनी गंगा मैय्या को निर्मल बनाने के लिए सजग हैं••• ?

मां गंगा की आर्त पुकार , करुण क्रंदन और असह्य वेदना पर केन्द्रित एक मार्मिक कथा यात्रा हैं गंगोत्री से गंगा! समर्पित रचना धर्मी की स्वर्णिम यात्रा संस्मरण साहित्य जगत के लिए अनुपम उपहार हैं । शब्द भंडार की धनी शशिभूषण सोनी जी ,

” मानो तो मैं गंगा मां हूं और ना मानो तो बहता पानी ” वास्तव में गंगा वह दिव्य नदी हैं जिसमें करोड़ों-करोड़ों भारतीयों की आत्मा निवास करती हैं । युगों युगों से भारत की सभ्यता की साक्षी इस दिव्य निर्मल प्रवाहित नदी के जल में दैवीय गुण विद्यमान हैं और इसके संबंध में ऐसी मान्यता चली आ रही हैं कि इसके दर्शन मात्र से ही मनुष्य के पाप धुल जाते हैं।यह भी कहा जाता हैं कि गंगा के पानी का एक चम्मच पीने से एक हजार अश्वमेध यज्ञ करने का पुण्य प्राप्त होता हैं। मां गंगा की पावन स्थली पर तीर्थ स्थलों में दर्शन करने प्रतिवर्ष सैकड़ों लोग हैं ।

जहां लाखों-करोड़ों श्रद्धालु गंगा आरती देखने एवं अपनी-अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु दर्शन-पूजन एवं स्नान करने आते हैं । मां गंगा सभी की मनोकामनाएं पूरी करती हैं। पूर्व पार्षद श्रीमति शशिप्रभा सोनी ने बताया कि वर्षों पूर्व अपने परिवारजनों के साथ मुझे भी हरिद्वार जाने का सुअवसर मिला । मैंने देखा कि शाम को आरती में हजारों-लाखों की संख्या में श्रद्धालु भक्त शामिल होते हैं । यहां पर पतित पावनी गंगा अपनी मंद धारा के साथ-साथ प्रवाहित होती हैं ? हम लोगों ने यहां मां गंगा के तट पर पुष्पांजलि अर्पण कर स्नान-दान एवं अन्य मंदिरों के दर्शन करने का आनंद उठाया। हरिद्वार में मंदिरों और आश्रमों की निराली छटाएं देखते ही बनती हैं । शाम के समय में हर की पौड़ी अद्भभुत और भव्य नज़र आता हैं ।

प्राणदायिनी गंगा धरती पर अवतरित कैसे हुई यह आदिकाल से पौराणिक विषय रहा हैं । हिन्दू धार्मिक ग्रंथों और पुराणों के अनुसार राजा समर ने सौ अश्वमेध यज्ञों का अनुष्ठान किया और 99 यज्ञ पूरे हुए तो इन्द्र को चिंता सताने लगी। दरअसल यदि सौ यज्ञ पूरे हो जाते तो राजा समर इंद्रासन के अधिकारी बन बैठते और इंद्र को राजपाठ से हाथ धोना पड़ता। इंद्र ने यज्ञ को सफल न होने देने के लिए अश्व को चुराने का तरकीब निकालने का प्रयास किया। इधर राजा समर ने अश्व को स्वतंत्र छोड़ दिया। उसके साठ हजार पुत्र उसके पीछे चल रहे थे। बताया जाता हैं कि एक बार अश्व द्रुत गति से दौड़ा और नजरों से ओझल हो गया ।इधर कुटनीती से इंद्र ने अश्व चुरा लिया और कपिल मुनि के आश्रम में ले जाकर बांध दिया। राजा सगर की दो पत्नियां थीं एक से साठ हज़ार पुत्र एवं दुसरी से एक पुत्र जिसका नाम भागीरथ था । साठ हज़ार पुत्र अश्व ढूंढ़ते ढुढ़ते कपिल मुनि के ऋषि के आश्रम में पहुंचे । अश्व को बंधा हुआ देखकर आग बबूला हो गये और महामुनि कपिल को अपशब्द कहने लगे । सागर के पुत्रों ने यहां तक कि ऋषि को चोर-चोर कहने लगे । कपिल ऋषि ने जैसे ही आंखें खोली तपस्या के तेज़ प्रताप से सब सगर के पुत्र जलकर राख के ढ़ेर में तब्दील हो गये ।सगर की प्रार्थना पर कपिल मुनि शांत हुए और लोगों को इंद्र की करतूतों का पता चला । राजा सगर बहुत निराश हो गए अब ना तो मैं चक्रवर्ती सम्राट बनूंगा और ना ही अश्वमेध यज्ञ करुंगा।सगर बहुत निराश हो गए तब कपिल मुनि ने उनके शेष बचे एक सुपुत्र भागीरथ को तपस्वी होने का वरदान दिया और बताया कि यह तपस्या से भगवती गंगा को पृथ्वी पर ला सके तो तुम्हारे साठ हज़ार पुत्र मुक्ति पा जाएंगे।यह तपस्या कितनी करनी होगी यह अनिश्चित हैं । एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार राजा हिमावत ने अपनी पुत्री गंगा को भूख-प्यास में तड़पते मनुष्यों और पशु पक्षियों को बचाने के लिए पृथ्वी पर भेजा । सत्यता चाहे कुछ भी हो गंगा हमारी भारतीय सभ्यता और संस्कृति से जुड़ी हुई हैं ।

आगे कथा प्रसंग की यात्रा क्रम को आगे बढ़ाते हुए शशिप्रभा सोनी ने बताया कि राजा सागर की दूसरी पत्नी के पुत्र भागीरथ को अश्व खोजने भेजा गया । उसने कपिल ऋषि के आश्रम में अपने भाईयों को राख के ढ़ेर के रुप में पाया । उसने कपिल ऋषि से ही उनकी मुक्ति का उपाय पूछा । ऋषि ने इसके लिए पृथ्वी पर गंगा मैया को लाने का सन्मार्ग सुझाया । ऋषि ने कहा कि भगीरथ तुम्हारे तपस्या से ही पूर्वजों की देह भस्म को गंगा अपने में समा लेगी और उन्हें मुक्ति प्रदान करेगी।
भागीरथ भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या करने चले। उन्होंने घोर तपस्या किया।उनके मंत्र स्वर” ओम नम: शिवाय ” हो गया और भगवान शिवजी प्रसन्न हो गये और गंगा को अपनी जटाओं में धारण करने के लिए तैयार हो गये ।

इससे पूर्व भागीरथ ने भगवान ब्रम्हा जी से अपने कमंडल से गंगा को देने के लिए प्रार्थना की भगवान ब्रह्मा को डर था कि गंगा अपने प्रवाह से पृथ्वी को बहा ले जायेगी । भगारथ ने भगवान शिव जी को अपनी जटाओं में धारण कर फिर धरती की ओर प्रवाहित करने का अनुनय विनय किया और शिवजी मान गये और गंगा को पृथ्वी पर ले आए । सामाजिक कार्यकर्ता एवं गंगोत्री से गंगा जैसी धार्मिक और पाराणिक पांडुलिपि ग्रंथ की रचना करने वाली श्रीमति शशिप्रभा सोनी ने बताया कि धार्मिक दृष्टिकोण से मां गंगा एक पवित्र और पूजनीय मानी जाती हैं। पुरातनकाल भूमि में अनेक तीर्थ स्थल विद्यमान हैं किन्तु आज कलयुगी अवतार में गंगा मैया भी थोड़ी-सी ” हाई प्रोफ़ाइल ” हो गई हैं । पहले तो सबको अपने पावन सानिध्य में लेकर उनके पापों को मसल-मसल कर धो देती थी लेकिन आज विकास की अंधी दौड़ और मानव निर्मित पर्यावरण प्रदूषण ने इसे करीब-करीब गंदा पानी बना दिया है । गंगा नदी के किनारे पर बढ़ते हुए अतिक्रमण, प्रदुषण और भुजल के शोषण ने कहना नहीं चाहता हूं । फिर भी मां गंगा को प्रणाम करती हूं कह रही हूं कि गंगा की हत्या की जा रही हैं। उत्तराखंड के विष्णु प्रयाग से अलकनंदा नदी और गंगोत्री से भागीरथी नदी देवप्रयाग में आकर संगम में मिलती-जुलती हैं, फ़िर गंगा बनकर पहाड़ों से मैदानी इलाकों में उतरती हैं । गंगा मैया जहां -जहां से गुजरती गई , वहां-वहां के लोगों का जीवन चरित्र , जीवन स्तर निर्मल होते गया । इसीलिए गंगा मैया के जल को अमृत माना जाता हैं । लेकिन आज जिस प्रकार से गंगा के किनारे बन रहे अपार्टमेंट्स, आलीशान हांटल और उससे निकलने वाले प्रदूषित पानी से हमारी गंगा मैली होती जा रही हैं । अब बात सर से ऊपर तक पहुंच गई हैं । जब साक्षात् गंगा मैया ने ही शरण में लेने से मना कर दिया हैं , तो फिर कोशिश की जाती हैं -कठौती में गंगा मैया को देखने की ? मगर वो तब दिखें , जब हम सब अपने मन की कालिख को धोकर उसे शुद्ध रुप से धवल-वणित कर पाएं। आज केंद्र -राज्य सरकार , ‘तो दूर-दूर की बात हैं लोगों को गंगा नदी को साफ़ करने इतनी-सी औकात कहां-कहां ? इसीलिए जब-तब गंगा में पानी कम दिखे या मैंली दिखें तो फिर लगता हैं कि “मन तो चंगा हैं , जरूर कठौती में कुछ पंगा हैं ? गंगा एक अत्यंत मनोहारी पावन नदी है । आज़ की स्वतंत्र भारत की जनता-जनार्दन को भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी से एक बार आस जगी हैं कि क्या हजारों हजार वर्षों से अविरल बह रही और अपनी सांस्कृतिक धार्मिक और आध्यात्मिक धारा को कोई अवरुद्ध होते देखती रहेगी कोटि कोटि हिन्दु जनों और श्रद्धा की आस्था से ऐसा कोई खिलवाड़ नहीं किया जाना चाहिए । गंगा प्रवाह हैं और उसे उसी रुप में बिना किसी अवरोध के प्रवाहित होती रहनी चाहिए । गंगा एक देवी के रुप में सदियों से मनुष्य जाति पर अपनी कृपा बिखेरती रही हैं और अनन्त तक बिखेरती रहेगी। हजारों श्रद्वालुओं उसके स्वागत सत्कार में पुष्प अर्पित करते हैं,विशाल वृक्ष अपनी शाखाओं को उपका जल स्पर्श करने को झुकाते हैं । असहाय पशु पक्षी शक्ति और सामर्थ्य पाते हैं और छोटे छोटे बच्चें उसके तटों पर क्रीड़ा करते हैं मुझे भी अपने पति शशिभूषण सोनी, दोनों बच्चों आलोक कुमार और शीला स्वर्णकार के साथ बार बार गंगा दर्शन करने का सुख मिला। मेरे जैसी ही हजारों नरनारी इसके अमृत तुल्य जल में डुबकी लगाने का सुख प्राप्त किए। कुलमिलाकर गंगा हमारी भारतीय सभ्यता संस्कृति की आधार हैं । संगीत की दृष्टि से मां गंगा ने सबको समृद्ध किया हैं । हम सबको उसका सम्मान करते हुए स्वछता अभियान के लिए प्रण-प्राण से जुट जाना चाहिए ।अम्बें न्यूज़ चैनल के पप्पू थवाईत ने कहा कि गंगोत्री से गंगा यात्रा संस्मरण पर आधारित पाण्डुलिपी ग्रंथ श्रीमति शशिप्रभा सोनी जी की एक समर्पित रचना धर्मी की अविराम अक्षर साधिका की अनुपम रचना हैं । उसमें उनकी सष्टानुरागी चिंतन , परिवार के साथ एक महिनें तक गंगोत्री के निकट रहते हुए चारों धामों की यात्रा,उनकी हृदय की भावना और अप्रतिम साहित्य साधना का दर्शन होता हैं । मोबाईल और फैसबुक एप्प के माध्यम से अपने पति शशिभूषण सोनी के संग यात्रा प्रसंग को एक पांडुलिपि ग्रंथ के माध्यम से संजोकर पाठकों तक पहुंचाने का स्तुय्य प्रयास हैं । साहित्यिक जीवन की इस धार्मिक यात्रा में उनका योगदान उत्कृष्ट लेखन शैली को दर्शाता हैं ।

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